Thursday, December 25, 2008

ओ साथी
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ओ साथी चलो ,
हम क्षितिज के पार चलें,
जहाँ एक सुंदर सपना बैठा है इंतजार में ,
उस क्षितिज के पार चलें जहाँ शान्ति हो हर ओर,
उस क्षितिज के पार चलें,
चलो ये दुनिया छोड़कर ,
नई दुनिया में चलें,
जहाँ शान्ति हो.
ओ साथी चलो उस क्षितिज की ओर चलें|
पर ध्यान रहे कोई,
पीछे न छूटे,
वरना सपने सच नहीं हो पाएँगे,
वो टूटकर बिखर जाएँगे,
आओ दुनिया वालों हम चलें वहां,
जहाँ खुशी हो,
मुस्कान हो,
ये दुनिया बहुत सूनी सी लगती है,
वीरान सी लगती है,
हम सब एक साथ चलेंगे ,
प्यार की नाव में,
भाईचारे के साथ,
तो हम दूसरी दुनिया में ,
पहुँच जाएँगे,
क्षितिज के उस पार जहाँ,
केवल हम होंगे प्यार करने वाले और कोई नहीं,
वहां हमारे सपने सच होंगे,
हम वहां देवताओं से मिलेंगे,
जो केवल प्यार बांटते हैं,
उनसे मिलेंगे जो खुशी बांटते हैं,
हम वहां खुश रहेंगे ,
उस क्षितिज के पार चलो ,
ओ साथी उस क्षितिज के पार चलो|
अनिरुद्ध सिंह

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